ये पुरानी सी कविताएं जो हैं
उनमें मैं कहीं छिपा हुआ हूं
अब जो लिख रहा हूं मैं
इसमें तुम छिप रही हो कहीं
लुक्का छिप्पी में वक्त बहता जाता है
और न तुम मिलती हो, न चैन
बस मुस्कुराना छिपा जा रहा
पर तुमको बताकर भी क्यों
तोड़ दूं अपने जुड़े रूह को
तुम ना मिलने आओगी कभी
तो ये दूरी खा रही मेरा सुकून
No comments:
Post a Comment