मैं रोता थोड़ेही हूं, तुम मुझे पत्थर ही पुकारते थे, बेवजह तो नहीं
पर तुमने शायद दो ही मर्तबा रोते देखा है, इतने सालों में
तड़का दे रहा था, सच कह रहा हूं, मिर्ची आंखें नम कर गई
तुम बताओ क्या लोगे, चाय बना दूं या जरासी शराब लोगे
मैने तो सुबह ही शराब उबाली है, दूध मिलाकर पी लूंगा
तुम्हे बोतल में भरी चाय दे दूंगा, विलायती है, मेरी वाली
अरे नही, वो चाय का बाप्फ आंखों में लगा,मैं रोता थोड़ेही हूं
अच्छा ये बताओ की आज का दिन कैसे गुजरा, मेरा तो अच्छा था
मां से बात कर रहा था, तुम्हारे नाम का जिक्र आगया तो फोन रख दिया
मां ने फिर फोन कर पूछा, तुम्हारा हाल चाल, और हमारा भी
अरे नही, वो खिड़की पर खड़े धूम्रपान कर रहा था, धुआं लग गया, मैं रोता थोड़ेही हूं
चलो अब मैं तुमको मेरे मेज के खाने छोड़ आता हूं, अच्छे से आराम करना
अभी सुबह ही तो तुम्हारे कांच को पोछा था, तुम मुस्कुराई भी तो थी
अब मेरे काम का वक्त जो हो गया है, मैं तुम्हे छोड़ आता हूं
अरे नही, वो मेज पर धूल थी उड़कर आखों में लगी, मैं रोता थोड़ेही हूं
तुम मुझे पत्थर ही पुकारते थे, बेवजह तो नहीं
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