Monday 2 January 2023

लिखूं तो तुम्हारी याद तनहा कर जाती है

शायद तुम नहीं समझती 
मेरे दिल के लफ़्ज़ों से बुने इन चादरों को 
वो लिपट जाना चाहती है 
तुम्हारे दिल के हसीं ख्यालों को 
जो शायद मेरे बारे में हों 
या शायद हमारे बारे में ही कभी
पर हम दोनों कहें भी, और क्या 
क्योंकि वक़्त भी नहीं मिटा पा रहा है 
हमारे दर्मिया के फासलों को |

कभी यूँही किसी दिन जब तुम से बातें होती हैं
खोकर तुम्हारे ख्यालों में जहां घूम आता हूँ मैं 
तुम्हारे ख्यालों से कह चूका हूँ मैं अक्सर 
आधी रात नहीं होता है वक़्त ऐसे पागलपन का 
तुम और तुम्हारे ख्याल कौनसा मेरा कहा मानते है 
शायद इसी मुश्किलाहट पर ही तो प्यार करता हूँ 
जो मेरे सोच पर हावी होकर मुझे तुम्हारी और खींचती है 
वरना मेरे दिल का होश खोना ना मुमकिन सा है 
अब इन फसलों की आदत सी डाल चूका हूँ मैं 
तुम्हे ही सोचकर ज़रासा रोज़ जी लेता हूँ मैं |

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