कहते है वहां है विरह राग
साल बीते कई,
मैं क्या, तट भी व्याकुल बसे हैं
जल भी प्यासा
तट के पेड़ो में न फल
न फूल न पंछी
यमुना बने है मरुस्थल
पत्र न, छाया
बसंत भी आया
क्या लाया, न झूला न नाचे मयूर
यमुना सी मेरे नयन की धारा
मैं नही जाना, यमुना तट
मेरा सब तो वहीं बीता
अब न कान्हा, न मुरलीधुन
केवल विरह, और बहते नयन
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